होली (holi) festival

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होली (holi)

होली (holi) वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।



होली (holi) के बारे मे इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इनमें प्रमुख हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है। संस्कृत साहित्य में वसंत ऋतु और वसन्तोत्सव अनेक कवियों के प्रिय विषय रहे हैं।


होली (holi) के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्ललाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राच्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्ललाद ईश्वर भक्त था। प्रह्ललाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्व होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका (holi) को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्ललाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्ललाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्ललाद की याद में इस दिन होली (holi) जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्ललाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (holi) (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्ललाद अक्षुण्ण रहता है। प्रह्ललाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली(holi) में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।(holi)
भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव (holi) केवल हिंदू ही नहीं कई मुसलमान भी मनाते हैं। सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरें हैं। (holi)

मुगलकालीन होली (holi) -


प्राचीन काल से अविरल होली (holi) मनाने की परंपरा को मुगलों के शासन में भी अवरुद्ध नहीं किया गया बल्कि कुछ मुगल बादशाहों ने तो धूमधाम से होली मनाने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया। अकबर, हुमायूँ, जहाँगीर, शाहजहाँ और बहादुरशाह ज़फर होली (holi) के आगमन से बहुत पहले ही रंगोत्सव की तैयारियाँ प्रारंभ करवा देते थे। अकबर के महल में सोने चाँदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसू का रंग घोला जाता था और राजा अपनी बेगम और हरम की सुंदरियों के साथ होली (holi) खेलते थे। शाम को महल में उम्दा ठंडाई, मिठाई और पान इलायची से मेहमानों का स्वागत किया जाता था और मुशायरे, कव्वालियों और नृत्य-गानों की महफि़लें जमती थीं।(holi)
जहाँगीर के समय में महफि़ल-ए-होली (holi) का भव्य कार्यक्रम आयोजित होता था। इस अवसर पर राज्य के साधारण नागरिक बादशाह पर रंग डालने के अधिकारी होते थे। शाहजहाँ होली को ईद गुलाबी के रूप में धूमधाम से मनाता था। बहादुरशाह जफर होली खेलने के बहुत शौकीन थे और होली को लेकर उनकी सरस काव्य रचनाएं आज तक सराही जाती हैं। मुगल काल में होली के अवसर पर लाल किले के पिछवाड़े यमुना नदी के किनारे आम के बाग में होली के मेले लगते थे। मुगल शैली के एक चित्र में औरंगजेब के सेनापति शायस्ता खाँ को होली खेलते हुए दिखाया गया है। दाहिनी ओर दिए गए इस चित्र की पृष्ठभूमि में आम के पेड़ हैं महिलाओं के हाथ में पिचकारियाँ हैं और रंग के घड़े हैं।(holi)
मुगल काल की और इस काल में होली (holi) के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहांगीर का नूरजहाँ के साथ होली (holi) खेलने का वर्णन मिलता है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है। शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का मुगलिया अंदाज ही बदल गया था। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के जमाने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे। मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य में दर्शित कृष्ण की लीलाओं में भी होली (holi) का विस्तृत वर्णन मिलता है।(holi)

होली (holi) का आध्यात्मिक महत्व





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30 टिप्पणियाँ

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  1. स्स्ज्द्द्द्ब्ब्व्डफब्ज्ज़ब्ज़

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  2. KABIR IS SUPERME GOD ACCORDING HOLY QURAN SHARIF GITA BIBELE GURUGRANTH SAHIB MUST KNOW DAILY SADHANA TV CHANNEL 7 30 To 8 30 pm

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  3. Meri jaankari me ye tyohaar sabse bekaar me se ek hai kyuki isme logo ko bigadne ka kary jyada kiya aur sudharne ka kam ,hindu dharam ka vedo me gita me kahi iska vivran nahi isliye vyarth hai

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  4. पूरे विश्व में एकमात्र संत रामपाल जी महाराज है जो शास्त्र विधि अनुसार भक्ति करवाते है।जिससे आध्यात्मिक और भौतिक लाभ मिलते है।
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  6. पुर्ण परमेश्वर कबीर परमात्मा कि भक्ति करने से पुरा जिवन खुशियों के रगों से भर जाता हैं।

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  8. असली होली आत्मा को परमात्मा के रंग में रंगने है। जिससे हमें सभी खुशी और मोक्ष भी प्राप्त हो सके ।
    शास्त्रों के अनुसार भक्ति करने से हमें सभी सुख और मुक्ति मिलती है। वर्तमान में वह भक्ति मार्ग जिस पर चल कर हम सभी सुखी और परमात्मा को प्राप्त जार सकते है । सन्त रंपलजी महाराज के पास है । जो हमे विस्तार से शास्त्रों को समझाते है। अधिक जानने के लिए देखे साधना चैनल रात्रि 7:30
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  9. होली के अवसर पर आप सभी दुनियां के नकली रंग में न रंग के पूर्ण परमात्मा की सत भक्ति के रंग में रंगे जो कभी नहीं मिटें ।

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 82 मंत्र 1 में लिखा है कि वह परमात्मा पृथ्वी आदि लोकों के चारों तरफ शब्दायमान हो रहा है और वह अच्छी आत्मा को जो दृढ़ भक्त हैं उनको प्राप्त होता है

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